Sunday, August 31, 2025

दल्ली-राजहरा का आंदोलन: शंकर गुहा नियोगी की शहादत और खनन माफिया का खूनी खेल दल्ली-राजहरा, छत्तीसगढ़

दल्ली-राजहरा, छत्तीसगढ़ का वह इलाका जहाँ धरती के गर्भ में लोहे का खजाना छिपा है, लेकिन यहीं की मिट्टी ने मजदूरों के खून से सनी एक ऐसी कहानी लिखी, जो शोषण, संघर्ष और साहस की मिसाल बन गई। यहाँ के लौह अयस्क खदानों में काम करने वाले मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले शंकर गुहा नियोगी की 28 सितंबर 1991 को हत्या कर दी गई। यह सिर्फ़ एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि पूंजीवादी शोषण के खिलाफ मजदूर एकजुटता पर हमला था।

दल्ली-राजहरा आंदोलन की पृष्ठभूमि

दल्ली-राजहरा की लौह खदानें भारत के सबसे बड़े लौह अयस्क भंडारों में से एक हैं। 1970 के दशक में यहाँ काम करने वाले मजदूरों को:
  • अमानवीय हालात: 12-14 घंटे की मजदूरी, बिना सुरक्षा उपकरण के काम।
  • गुलामी जैसी ज़िंदगी: झोंपड़ियों में रहना, पीने का साफ पानी तक न होना।
  • मजदूर नेता का आगमन: 1977 में शंकर गुहा नियोगी ने यहाँ छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (CMM) बनाकर मजदूरों को संगठित किया।

नियोगी का संघर्ष और माँगें

नियोगी ने न सिर्फ़ मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि समाजवादी मूल्यों को ज़मीनी स्तर पर उतारने का प्रयास किया:
  1. 8 घंटे काम और न्यूनतम मजदूरी: खदान मालिकों के विरोध के बावजूद हड़तालों के ज़रिए माँगें मनवाईं।
  2. स्वास्थ्य और शिक्षा: मजदूरों के लिए हॉस्पिटल और स्कूल खुलवाए।
  3. महिला सशक्तिकरण: खदानों में काम करने वाली महिलाओं को समान वेतन और सम्मान दिलाया।
  4. सांस्कृतिक जागृति: नुक्कड़ नाटकों और गीतों के माध्यम से मजदूरों में चेतना फैलाई।

हत्या की साजिश: क्यों मारे गए नियोगी?

नियोगी का संघर्ष खदान मालिकों, ठेकेदारों और सरकारी तंत्र को हिला रहा था। उनकी हत्या के पीछे कारण:
  1. मजदूर एकजुटता को तोड़ना: CMM के नेतृत्व में मजदूरों ने कंपनियों की मनमानी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी।
  2. भ्रष्ट व्यवस्था को चुनौती: नियोगी ने खदान माफिया-नेता-प्रशासन गठजोड़ को उजागर किया था।
  3. लोहा उत्पादन का विरोध: नियोगी पर्यावरण विनाश और आदिवासी विस्थापन के खिलाफ थे।
हत्याकांड का दिन: 28 सितंबर 1991 की रात, भिलाई के सदर बाजार स्थित उनके घर में दो बंदूकधारियों ने घुसकर गोली मारी।

हत्यारे कौन थे?

  • प्रत्यक्ष आरोपी: रशीद और पीएस रजक (ठेकेदारों द्वारा भाड़े पर लिए गए)।
  • साजिशकर्ता: खदान मालिक चंद्रशेखर प्रसाद (चंदू भाई) और उनके सहयोगी।
  • विवादास्पद न्याय: 1997 में सत्रस कोर्ट ने 10 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन 2005 में हाईकोर्ट ने सबको बरी कर दिया।

आंदोलन की विरासत और प्रभाव

  1. मजदूर आंदोलनों की प्रेरणा: CMM ने आज भी खदान क्षेत्रों में सक्रियता जारी रखी है।
  2. नीतिगत बदलाव: नियोगी के संघर्ष ने केंद्र सरकार को मजदूर कल्याण नीतियाँ बनाने पर मजबूर किया।
  3. सांस्कृतिक प्रतिरोध: उनके गीत “हम चले अपने पंजे लड़ाई के लिए…” आज भी मजदूरों में जोश भरते हैं।
  4. नियोगी की सीख“लड़ाई सिर्फ़ वेतन की नहीं, इंसानियत की है।”

वर्तमान संदर्भ में दल्ली-राजहरा

  • खनन का विस्तार: आज भी खदानों में मजदूरों को सुरक्षा और न्याय की लड़ाई लड़नी पड़ रही है।
  • पर्यावरण विनाश: लोहे के लिए जंगल काटे जा रहे हैं, आदिवासी विस्थापित हो रहे हैं।
  • नियोगी की याद: हर साल 28 सितंबर को शहीद दिवस मनाया जाता है, जहाँ हज़ारों मजदूर एकत्र होते हैं।

निष्कर्ष: नियोगी अमर हैं!

शंकर गुहा नियोगी की हत्या ने साबित किया कि सत्ता और पूँजीपति वर्ग संगठित जनता से डरते हैं। परंतु उनकी शहादत ने यह भी सिखाया कि “खून से खेती होती है, क्रांति की फसल”। दल्ली-राजहरा का संघर्ष आज भी हर उस मजदूर की आवाज़ है जो अपने हक़ के लिए लड़ रहा है।

संदर्भ स्रोत:
  • छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले (CRR No. 563/1997)
  • “शंकर गुहा नियोगी: जीवन और संघर्ष” – पुस्तक
  • CMM (छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा) के आधिकारिक दस्तावेज़

हमर अधिकार न्यूज
“शोषण के खिलाफ, संघर्ष की गाथा”

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