हसदेव अरण्य, छत्तीसगढ़ का एक विशाल और समृद्ध वनक्षेत्र, जिसे “पूर्वी भारत के फेफड़े” के नाम से जाना जाता है, आज खनन और विकास के नाम पर तबाही के कगार पर खड़ा है। यह वन न सिर्फ़ हज़ारों प्रजातियों का आवास है, बल्कि आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक और आर्थिक जीवनरेखा भी है। लेकिन कोयला खनन के लिए इसके बड़े पैमाने पर कटान से पर्यावरणीय और सामाजिक संकट गहरा रहा है।
हसदेव अरण्य को क्यों काटा जा रहा है?
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कोयला खनन परियोजनाएँ:
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हसदेव अरण्य के नीचे 1.3 अरब टन कोयले का भंडार है, जिसे निकालने के लिए वन क्षेत्र साफ़ किया जा रहा है।
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परसा, कोकामुंडा, और मदनपुर जैसे कोल ब्लॉक्स के लिए 2020 में पर्यावरण मंजूरी दी गई।
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कंपनियाँ जैसे एस्सार पावर और कोल इंडिया लिमिटेड ने यहाँ खनन शुरू किया है।
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ऊर्जा उत्पादन का दबाव:
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सरकार का दावा है कि यह कोयला देश की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करेगा।
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छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे “राज्य के आर्थिक विकास” से जोड़ा है।
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कानूनी छूट और नीतिगत बदलाव:
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वन अधिकार अधिनियम, 2006 और पर्यावरण संरक्षण नियमों को कमज़ोर करके परियोजनाओं को हरी झंडी दी गई।
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वन भूमि को गैर-वन उपयोग में बदलने की अनुमति दी गई।
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वन कटान से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ
1. पर्यावरणीय तबाही
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जैव विविधता का नुकसान:
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हसदेव अरण्य में 82 प्रजाति के पेड़, 167 प्रजाति के पक्षी, और 21 प्रजाति के स्तनधारी (हाथी, तेंदुआ, स्लॉथ बीयर) पाए जाते हैं।
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खनन से इनका प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है।
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जल स्रोतों का सूखना:
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यह वन हसदेव नदी का उद्गम स्थल है, जो छत्तीसगढ़ और ओडिशा की 15 लाख से अधिक आबादी को पानी उपलब्ध कराती है।
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वन कटान से भूजल स्तर गिरेगा और नदियाँ सूखेंगी।
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जलवायु परिवर्तन में योगदान:
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हसदेव अरण्य प्रतिवर्ष लाखों टन कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है। इसके कटान से ग्रीनहाउस गैसें बढ़ेंगी।
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2. आदिवासी समुदायों पर संकट
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विस्थापन और आजीविका का नुकसान:
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यह वन गोंड, हल्बा, और कोरवा आदिवासियों की आध्यात्मिक और आर्थिक पहचान है।
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खनन से 10,000+ आदिवासी विस्थापित होंगे और उनकी पारंपरिक खेती, वनोपज पर निर्भरता खत्म होगी।
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सांस्कृतिक विरासत का विनाश:
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आदिवासी देवी-देवताओं से जुड़े पवित्र स्थल (सरना) और जड़ी-बूटियाँ नष्ट हो रही हैं।
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3. मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि
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हाथियों के प्रवासी मार्ग बाधित होने से गाँवों में घुसपैठ बढ़ेगी, जिससे जान-माल का नुकसान होगा।
4. दीर्घकालिक आर्थिक नुकसान
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खनन से अल्पकालिक राजस्व मिलेगा, लेकिन वनों के नष्ट होने से कृषि उत्पादकता, पर्यटन, और वनसंपदा से होने वाली आय स्थायी रूप से खत्म हो जाएगी।
विरोध और आंदोलन
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आदिवासी महिलाओं का सत्याग्रह: 2021 में “हसदेव अरण्य बचाओ” आंदोलन में हज़ारों आदिवासियों ने 300 किमी पदयात्रा निकाली।
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युवाओं की भूमिका: स्थानीय युवा सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैला रहे हैं।
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कोर्ट केस: एनजीओ और पर्यावरणविदों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में याचिकाएँ दायर की हैं।
क्या हो सकता है समाधान?
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वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ज़ोर: कोयले की बजाय सौर और पवन ऊर्जा को प्राथमिकता देना।
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सामुदायिक वन अधिकारों का सम्मान: आदिवासियों को वन प्रबंधन में हिस्सेदार बनाना।
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इको-टूरिज्म को बढ़ावा: हसदेव को पर्यटन हब बनाकर स्थायी आय सृजित करना।
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सख्त कानूनी पालना: वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और PESA (पेसा) कानून को लागू करना।
निष्कर्ष
हसदेव अरण्य का विनाश सिर्फ़ एक वन की कटाई नहीं, बल्कि एक पूरी सभ्यता और पारिस्थितिकी तंत्र का अंत है। सरकार और नागरिक समाज को यह समझना होगा कि टिकाऊ विकास के बिना “विकास” अधूरा है। जैसा कि आदिवासी नेता कहते हैं: “जंगल हमारी माँ है, उसे बेचा नहीं जा सकता।”
संदर्भ स्रोत:
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छत्तीसगढ़ वन विभाग रिपोर्ट, 2022
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NGT केस नंबर: 12/2021 (हसदेव अरण्य मामला)
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स्थानीय आदिवासी समुदायों के साक्षात्कार
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