दल्ली-राजहरा का शहीद अस्पताल: मजदूरों के संघर्ष और सेवा की मिसाल दल्ली-राजहरा, छत्तीसगढ़
शहीद अस्पताल, दल्ली-राजहरा के लौह अयस्क खदान क्षेत्र में स्थित एक ऐसा चिकित्सा संस्थान है जो केवल स्वास्थ्य सेवाएँ ही नहीं, बल्कि मजदूरों के अधिकारों और सामूहिक संघर्ष की प्रेरणा का प्रतीक है। इस अस्पताल की स्थापना मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (CMM) द्वारा 1983 में की गई थी। यह अस्पताल उन तमाम लोगों के लिए आशा की किरण बना हुआ है जो पूँजीवादी शोषण और सरकारी उपेक्षा के बीच जीने को मजबूर हैं।
इतिहास: मजदूरों के खून-पसीने की नींव
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स्थापना का उद्देश्य: 1980 के दशक में दल्ली-राजहरा की खदानों में काम करने वाले मजदूरों को न तो सुरक्षित काम का माहौल मिलता था और न ही चिकित्सा सुविधाएँ। नियोगी ने इस अस्पताल को मजदूरों के सामूहिक दान और श्रम से बनवाया।
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नाम की महत्ता: “शहीद अस्पताल” नाम उन मजदूरों को समर्पित है जो खदानों में काम करते हुए जान गँवा बैठे या शोषण के खिलाफ लड़ाई में शहीद हुए।
शहीद अस्पताल की खासियत
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मजदूरों के पैसे से बना अस्पताल:
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खदान मजदूरों ने अपनी एक दिन की मजदूरी दान में दी, जिससे अस्पताल का निर्माण हुआ।
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CMM और स्थानीय ट्रेड यूनियनों ने इसे चलाने में सहयोग दिया।
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सस्ती और गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ:
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मरीजों से नाममात्र का शुल्क लिया जाता है। गरीबों को मुफ्त इलाज।
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प्रसूति सुविधा, आपातकालीन वार्ड, और दवाइयाँ सब्सिडी पर उपलब्ध।
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समाजवादी स्वास्थ्य मॉडल:
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डॉक्टरों और कर्मचारियों का चयन स्थानीय समुदाय की भागीदारी से होता है।
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अस्पताल प्रबंधन में मजदूरों का सीधा हस्तक्षेप।
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स्वास्थ्य के साथ शिक्षा और जागरूकता:
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नियमित स्वास्थ्य शिविर और एनीमिया, टीबी, सिलिकोसिस जैसी खदान कर्मियों की बीमारियों पर कैंपेन।
चुनौतियाँ: अस्पताल पर संकट के बादल
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वित्तीय संकट: दान और यूनियनों पर निर्भरता के कारण आर्थिक दबाव।
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राजनीतिक दबाव: खदान मालिकों और भ्रष्ट तत्वों ने कई बार अस्पताल को बंद करवाने की कोशिश की।
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नियोगी की हत्या का प्रभाव: 1991 में नियोगी की हत्या के बाद अस्पताल का प्रबंधन कमजोर हुआ, लेकिन मजदूरों ने इसे बचाए रखा।
वर्तमान स्थिति: आज भी जिंदा है नियोगी का सपना
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सेवाएँ: 250 बेड का यह अस्पताल प्रतिदिन 300+ मरीजों का इलाज करता है।
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विशेषज्ञता: सिलिकोसिस (खनन से होने वाला फेफड़ों का रोग) के इलाज में विशेषज्ञता।
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समुदाय का सहयोग: स्थानीय लोग स्वेच्छा से सफाई, रक्तदान, और धन जुटाने में मदद करते हैं।
शहीद अस्पताल की विरासत
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राष्ट्रीय प्रेरणा: यह भारत के उन गिने-चुने अस्पतालों में है जो पूरी तरह जनसहयोग से चलते हैं।
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वैश्विक पहचान: अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठनों (ILO) ने इसे “श्रमिक अधिकारों की जीत” बताया।
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नियोगी जी का संदेश: “यह अस्पताल सिर्फ़ बीमारियाँ नहीं, गुलामी की मानसिकता का भी इलाज करता है।”
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समय: 24×7 आपातकालीन सेवाएँ उपलब्ध
नोट: यह अस्पताल आज भी मजदूरों के संघर्ष और सामूहिक सपनों की मिसाल है। अधिक जानकारी के लिए छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (CMM) से संपर्क करें या सीधे अस्पताल पहुँचें।
हमर अधिकार न्यूज
“स्वास्थ्य हक़ है, भीख नहीं!”
स्रोत:
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छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (CMM) के रिकॉर्ड
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स्थानीय मजदूरों और डॉक्टरों के साक्षात्कार
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“शहीद अस्पताल: एक जनआंदोलन” (पुस्तक)